भोपाल। सेंट्रल वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन से वर्ष 2000 में रिटायर हुए 80 साल के श्यामनारायण चौकसे को ज्यादातर लोग तब याद करते हैं, जब सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े होते हैं। चौकसे की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के आदेश दिए थे। चौकसे की पहचान यहीं खत्म नहीं होती। भोपाल में रहने वाले चौकसे ने 2014 में जब राजघाट पर गांधी समाधि की दुर्दशा देखी तो उन्होंने तय कर लिया कि वे अपने स्तर पर कानूनी लड़ाई लड़कर ये तस्वीर बदलेंगे। चौकसे कहते हैं कि औसतन हर साल गांधी समाधि की देखरेख के लिए 4.50 करोड़ रुपए मिलते हैं।
इसके बाद भी वहां खुले नाले में गंदगी देखकर मैं विचलित हो गया। स्वच्छता के पुजारी गांधी की समाधि पर टॉयलेट्स और अन्य स्थानों में ऐसी गंदगी थी कि वहां नाक पर रूमाल रखे बगैर खड़े होना मुश्किल था। यह सब तब हो रहा था जब देश में स्वच्छता का सरकारी बिगुल बजना शुरू हुआ था। चौकसे कहते हैं कि यह पूरा परिसर 44 एकड़ में हैं। इसमें 15 एकड़ में राजघाट है। 2014 में मैंने देखा कि यहां पीने के पानी की टोटियां तक टूटी हुई थीं। गंदगी थी। इसके बाद 2015 में मैंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
सुनवाई के दौरान एक न्यायमूर्ति गीता मित्तल जो दो जजों की पीठ की प्रमुख थी, उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सीपीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर, एनडीएमसी के कमिश्नर तथा सचिव राजघाट समिति की उपस्थिति में कहा था कि एक वृद्ध भोपाल से आकर यह सब देखता है और पीआईएल लगाता है लेकिन शर्म की बात है कि आप लोगों को दिल्ली में ही रहते हुए यह सब नहीं दिखा। याचिका में कहा गया कि राष्ट्रपिता की समाधि के पास यह हालात हैं तो फिर आम आदमी यहां क्यों आएगा? इसके बाद सरकार हरकत में आई और हालात बदलने लगे।
क्या-क्या बदला : खुले नाले की गंदगी रोकने के लिए एसटीपी लगा। Áसमाधि स्थल के पास तीन स्थानों पर पानी के लिए आरओ लगाए गए। Áटूटे फुटपाथों में नई टाइल्स लगाई गईं। Áसमाधि स्थल के पॉन्ड में गंदगी थी और काई थी, अब यहां कमल के फूल खिले हैं।
गांधी एक इंसान नहीं, विचार है : गांधी एक इंसान नहीं, विचार है। वे पढ़ने से ज्यादा अनुकरण का विषय हैं। उनकी समाधि की दुर्दशा सिर्फ मेरे लिए नहीं, पूरे देश के लिए शर्म का विषय था। मैं मरते दम तक गांधी और इससे जुड़ी संस्थाओं की गरिमा की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हूं।